नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Thursday, August 24, 2017

#42 # साप्ताहिक चयन: "अगले जन्म की कविता" / नीलोत्पल मृणाल

युवा होना ही अनन्य जिम्मेदारियों से भर देता है, जो समझ का एक स्तर हो l तन मन का युवा, जोश और कर्तव्य के धन से अपने आस-पास बिना निरपेक्ष रहे हर उस भूमिका में आकर उत्तर देगा जो उस समय का उस युवा से प्रश्न होगा l आज के कवि की भूमिकाओं की अनन्य सुरम्य लीलाएं हैं l वह एक प्रखर युवा जो ग्रामीण जीवन की माटी ललाट पर जमाये उमस भरी दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी करने आता है और सीधे ही उस सिस्टम से दो हाथ करने वाले अपने ही तरह के दुसरे युवाओं का नेतृत्व करता है, लाठियों का सामना करता है और डटकर मुकाबला करता है जो सिस्टम अचानक ही परीक्षा को अभिजात्यीय बना देना चाहता है l चुपचाप रहकर संवेदनहीनता की जेंटलमेंशिप की अदा अपनाकर अपनी तैयारी जारी रखा जा सकता पर फिर वह माथे पर लिपटी माटी को क्या मुंह दिखाता l
 तैयारियों के साथ ही वह अपनी माटी का रंग बिखेरना भी खूब जानता है l कभी किसी विश्वविद्यालय परिसर तो कभी किसी और परिसर वह हर हर झूम झूम अपने भदेस अंदाज से आज के हालात पर अपनी प्रतिक्रिया देता l समक्ष के युवाओं को गुदगुदा भी देता और कहीं गहरे जता भी देता कि तुम्हारे सरोकार तुम्हे रहरह कर पुकार रहे l एक बाजार जहाँ सपनों का सबसे बड़ा वितान भरभराकर सहसा गिर पड़ता है और उसे एक एक कर फिर से खड़ा कर उस रेस में होना होता है, जहाँ शिक्षा सुधारों के मोहताज देश के प्रत्येक युवा का प्रारंभन बिंदु भी एक नहीं होता, ऐसे में माटी का लाल ठूंठ कैसे बना रहता..? प्रतिभा कभी वाचन, कभी गायन और कभी लेखन से चमत्कार करती और सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के अप्रकाशित अनगिन संघर्षों को एक बेहतरीन उपन्यास लिखकर कुछ यों उजागर किया कि साहित्य अकादमी ने आपके उपन्यास 'डार्क हार्स ' को वर्ष का 'साहित्य अकादमी युवा उपन्यास' के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुरस्कार से नवाज़ दिया l जी हाँ, आज की कविता के लेखक हैं बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री नीलोत्पल मृणाल जी l 
नीलोत्पल मृणाल
आज की प्रारम्भिकी ने शब्दों का मित अनुशासन नहीं माना क्यूंकि मृणाल जी को करीब से देखा है, आप हमारे समय के सर्वाधिक प्रखर युवा स्वर हैं l आपकी कविता का विषय आज के समय के सबसे बड़े विस्फोट इंटरनेट पर लक्षित है l यह एक संयोग है कि आपकी इस विशिष्ट कविता पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं श्री वीरेश्वर तिवारी जो आपकी ही भांति युवा ओज से लबालब हैं और शिद्दत से सिविल सर्विस की तैयारी इलाहबाद में रहकर कर रहे हैं l 
***
चित्र: शशांक शेखर राय-cellclicks

"अगले जन्म की कविता"
मोबाइल का ऑफ़ होना शांति है,
इंटरनेट का नहीं होना है एकाग्र होने की अवस्था

निरंजना नदी के तट पर
किसी पीपल के नीचे आँख बंद कर ध्यानस्थ होना है
उस गांव में खटिया पर बैठ भुट्टा खाना
जहां किसी कंपनी का नहीं आता है नेटवर्क..

उरुवेला का रमणीक जंगल है वो गांव
जिसके तीस चालीस किलोमीटर की परिधि में
गाड़ा नहीं गया हो एक भी टॉवर
और आप हैं बुद्ध
आपका दोस्त बबलुआ है ऋषि कौण्डिन्य
जिसके संग लीन हैं आप आम गाछ तरे तास खेलने में...

ज्ञान क्या है?
गूगल का नहीं होना है जिज्ञासा
जो ले जाता है हमे किताबों को ओर
जो कराता है हमे पढ़ने गुनने और रटने का अभ्यास
मोड़ कर रख देता है विद्यार्थी जरुरी पन्ना
भूलने पर फिर दोहराता है पाठ
फिर नहीं भूलता आदमी जिंदगी भर
दोहराया तिहराया और चौहराया गया ज्ञान...

अँधेरे से प्रकाश की ओर जाना है
व्हाट्सअप का अनइंस्टॉल हो जाना
अज्ञानता से मुक्त है वो आदमी
जिसने साल भर से 
व्हाट्सअप का कोई वायरल मैसेज न पढ़ा हो 
न किया हो तुरंत देशहित में उसे 
किसी और मानव को फॉरवर्ड..

माया को परास्त कर चुका है वो आदमी
जो किसी व्हाट्सअप ग्रुप का नहीं है एडमिन
न इतना सक्रिय सदस्य कि
भोरे भोरे सबको भेजता हो मंगल प्रभात का
गुलदस्ता सजा हुआ पोस्टर सन्देश....

घर के करीब होता है
परिवार के करीब होता है
मित्रों के करीब होता है
समाज के करीब होता है
अपने हेराये बिलाये पुरखों के करीब होता है
और तो और ईश्वर के भी करीब होता है वो आदमी
जो नही है फेसबुक पर...

निर्वाण का मिलना 
नहीं है तृष्णा का क्षीण होना
निर्वाण है स्मार्ट फ़ोन त्याग देने की इच्छा

और मोक्ष नहीं है
जीवन और मरण के चक्र से मुक्त होना
मोक्ष तो है
अगला जन्म उस घर में लेना
जिसकी आगे की तीन पीढियां
न फेसबुक पर अकाउंट बनाएंगी
न करेंगी व्हाट्सअप पर चैट.....जय हो।

***

कवि ने बेहद सवेंदनशील विषय उठाया है. स्मार्टफोन्स और इंटरनेट आदि की आभासी दुनियाँ.
आज का समय पूरी तरह से इसकी गिरफ्त में है या यूं कहें कि "अधीन" है और पराधीन तो सपनेहुँ सुख नाही, ऐसा हम सब जानते हैं. अधीनता कभी शांति नही दे सकती इसलिए इस आभासी दुनिया ने जो शांति छीनी है कवि उस शांति को पाना चाहता है और इसलिए आभासी दुनिया की शक्ति का सबसे सशक्त जरिया 'मोबाइल' को ऑफ कर देने की बात कर रहा है.
एकाग्रता(=एक+अग्रता) किसी निश्चित बिंदू पर सम्भव है. कवि को बखूबी मालूम है कि इंटरनेट विभिन्न सामग्रियों का गठ्ठर है जो एकाग्र नही होने देगा इसलिए पहले इंटरनेट को दूर करो. कवि के लिए भौतिक जीवन से इतर जो बातें संतोष और सुकूँ दे रहीं है उनसे वो खुद को बुद्ध के आसपास खड़ा महसूस कर रहा है और आज के परिवेश में जंगल शब्द उसी जगह का समानार्थी है जहाँ किसी मोबाइल कंपनी का टावर नही आता. इसलिए वर्तमान बुद्ध को किसी ऐसी ही जगह की तलाश होगी जैसी कल्पना कवि ने किया है. ध्यानस्थ होने की अवस्था आत्मसंतुष्टि का साधन है..कवि की आत्मा गांव के होरहा में भुजे भुट्टे की तृप्ति मांग रही इसलिए अपनी पसंदीदा चीज से आत्मा को सुकून देकर ध्यानस्थ होने जैसी अवस्था की कल्पना करना बेहद खूबसूरत और ब्यवहारिक लगता है.
याद रखने की जरूरत अब हवा हो गयी है सब कुछ जानने वाला 'जिन' अब आज के विद्यार्थी की मुठ्ठी में है. किताबें अब ऑनलाइन है जहाँ पन्ने मोड़ने का ऑप्शन नहीं और न ही उन पन्नो पर अपनी तरफ से कुछ लिख लेने का. शिक्षा स्मार्ट हो गयी है. किताबें धूल खा रही हैं. विद्यार्थी हर चीज ऑनलाइन ढूंढ ले रहा है. सब कुछ गूगल पर है लेकिन फिर भी कवि की चिंता जायज है क्योंकि गूगल पे वही मिलेगा जिसकी हम तलाश करेंगे. हमारे अध्यापकों की नसीहतें कि "किसी से तब पूछो जब किताब में न मिले या खुद न ढूंढ पाओ." किताब में उस शब्द के बारे में दो-चार जानकारी और मिलेगी. आगे-पीछे के चार और शब्द मिलेंगे.
कवि ने पूरी कविता को बेहद रोचकता और आधुनिकता में ढालकर एक कटु सत्य से परिचित कराने का प्रयास किया है जो अंततः सफल भी है।
कवि ने इन पंक्तियों से दिल को छुआ है कि जो फेसबुक पर नही है वो परिवार,समाज,मित्र और इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि ईश्वर के करीब है. व्हाट्सअप तो मानसरोवर से सीधे महादेव के दर्शन करा देता है जिसके दर्शन पाने के लिए न जाने कितने वर्षों की तपस्या के बाद अपना सिर तक अर्पित कर देना पड़ता था और अब यही संदेश दस लोगों को भेज देंने पर सीधे आप मनचाहा वर पा सकतें हैं; क्योंकि हम आधुनिक हो गए हैं...!

वीरेश्वर तिवारी



0 comments:

Post a Comment

आपकी विशिष्ट टिप्पणी.....